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छोड़ो ये नादानी – Vibha Kumari

 

              छोड़ो ये नादानी 

छोड़ो ये नादानी, बनों तुम हिन्दुस्तानी,

अंग्रेजों के पीछे मत दौड़ो, कैसी जिद्द तुने ठानी,

छोड़ो ये नादानी………..

१ तुम नहीं जानते किसके सपनों को चूर करने चले हों,

अंग्रेजों की रीति अपनाकर अपने को मजबूर करने चले हों,

नेहरू, सुभाष,अम्बेडकर ने तो दे दी थी कुर्बानी,

बापू ने तो यहां तक मिटा दिया था निशानी,

छोड़ो ये नादानी……….

२ फिर वही सभ्यता लाकर खुद को नाश करोगे,

होश आएगी तुमको जब आजादी के लिए तड़पोगे,

पैरों में बेड़ियां होंगी हाथों में हथकड़ियां,

भुखे मरोगे जब नहीं मिलेगी दाना पानी,

छोड़ो ये नादानी..….

३ ज्यादा वक्त नहीं है गुजरा अब भी संभल जाओ,

बचा लो अपने देश को उस संस्कृति को न लाओ ,

गोस्वामी, प्रेमचंद, शिवानी आदी को तुम न भुलाओ ,

राष्ट्रभाषा हम सबों की हिन्दी है पुरानी,

छोड़ो ये नादानी…….

अंग्रेजों के पीछे……

छोड़ो ये नादानी…….

राष्ट्रभाषा हम सबों……….

राष्ट्रभाषा हम सबों……..

                                   स्व- रचित कविता 

                                     विभा कुमारी 

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