जन्नत भी वही, जहाँ भी उसी से,
पूछो दिल से राज, हर दिल के आईने से।
किस रूप में उसे देखूँ, हर रूप में समाए,
जीवन है उसी से, वह हर दिल में मुस्कराए।
घर शोभता उसी से, वह घर की राज लक्ष्मी है,
जीवन उसी से मिलता, उसमें किस बात की कमी है।
माँ की ममता भी वही, दिल की धड़कन भी सही है,
घर की दुर्गा भी वही, घर की सरस्वती भी वही है।
किस किस का नाम लूँ मैं, जो दिल पर हैं छाई,
जमाने की महफिल में, जो हिजाब बनकर आई।
मुस्करा कर जरा कह दो, यह जग भी उसी का,
उसके ही चलते, इस जग में नाम है सभी का।
कब सोई वह रहती, कब सोने की है फुर्सत,
दिल में उसकी पली है, हजारों उसके हसरत।
मंजिल उसकी यही है, घर स्वर्ग-सा बन जाए,
है दिल में मचलती, बच्चों पर प्यार लुटाए।
घर की तकदीर भी वही, तदवीर भी वही है,
अपने दिल से जरा पूछो, घर की तस्वीर भी वही है।
वह सम्मान की कली, गई बरसों से छली है,
पर अरमान है उसके दिल में, वह भी गोद में पली है।
कोमल वदन है उसकी, वह कोमलांगी कहलाए,
हर जिया में रूप उसकी, हर रूप में जगमगाए।
माता की है ममता, पापा का दुलार है वह,
घर के हर कोने में बसी, प्रियतम का प्यार है वह।
सम्मान की है मूरत, पर अब भी मुश्किल में पड़ी है,
लगन बढ़ने की है उसमें, वह हर राह में खड़ी है।
नारी है दिल का तार, जो हर दिल को जोड़ती है,
घर के सुख खातिर, वह अपने सपने भी छोड़ती है।
अब भी राहें हैं उसकी, मुश्किल पर हौसले की धनी है,
उसमें कुछ कर गुजरने की, तमन्ना उसके दिल में जो ठनी है।
ऐसा सम्मान दे दो केवल महिला दिवस पर न याद आए,
कोई न गिला शिकवा, जो अब फरियाद बनके छाए।
अमरनाथ त्रिवेदी
पूर्व प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बैंगरा
प्रखंड-बंदरा, जिला- मुजफ्फरपुर

