आत्म ज्योति ज्ञानाज्य से, करें दीप्तिमय आज।
लेकर नव संकल्प से, रखिए सुखी समाज।।
भाव हमेशा उच्च रख, करिए प्रभु से प्यार।
अमित तोष आनंद की, खुशियाँ मिले अपार।।
अवलि सजाकर दीप की, करिए तम को दूर।
दीनों का उपकार कर, पाएँ सुख भरपूर।।
अपनी माटी से जुड़ें, रखिए कायम पर्व।
नेह गेह के दीप से, होगा सबको गर्व।।
घर- घर वंदनवार की, छटा अनोखा रूप।
जगमग करते दीप सब, लगते दिव्य अनूप।।
फुलझड़ियों सँग नाचता, दीवाली का पर्व।
हर्षित होकर दीप भी, कहता हमको गर्व।।
प्रमुदित होकर दीप जब, लाता नव उजियार।
अंधकार कहता फिरे, अब है मेरी हार।।
माटी का दीपक जले, पाकर स्नेहिल तेल।
रखें स्वच्छ पर्यावरण, करिए इनसे मेल।।
नित हितकारी रोशनी, हो जीवन पाथेय।
राग-द्वेष को भूलकर, भजिए प्रभु का गेय।।
प्रेम भाव की ज्योति को, सभी जलाएँ आज।
प्रमुदित मन मिलकर सभी, करिए सुंदर काज।।
देव कांत मिश्र ‘दिव्य’ मध्य विद्यालय धवलपुरा, सुलतानगंज, भागलपुर, बिहार