पहली बूंँद धरा पर आई – गीत
अस्त- व्यस्त हो चुके सभी अब, धूलकणों ने ली जम्हाई।
पहली बूंँद धरा पर आई, बजती जैसे हो शहनाई।।
व्यथित सभी थें गहन ताप से, नहीं चैन का नाम कहीं था।
ताल, तलैया, पनघट, सूखे, हरियाली का नाम नहीं था।।
जब बूँदों का स्पर्श हुआ तो, लगी धरा जैसे शर्माई।
पहली बूंँद धरा पर आई, बजती जैसे हो शहनाई।।०१।।
झुलस गए थें पत्ते सारे, उपवन सूना सा लगता था।
दूर जहाँ तक नजरें जाती, सूखा-सूखा हीं मिलता था।।
बूँदों से जब मिलन हुआ तो, सारी कलियाँ अब मुस्काई।
पहली बूंँद धरा पर आई, बजती जैसे हो शहनाई।।०२।।
नर्मी आयी वायु ताप में, चैन सभी को अब आया है।
पावस का करके आलिंगन, तरुवर का मन हर्षाया है।।
तरुवर सारे झूम उठे हैं, लौटी जैसे हो तरुणाई।
पहली बूंँद धरा पर आई, बजती जैसे हो शहनाई।।०३।।
मोर, पपीहे नाच रहें हैं, संगी-साथी भी मुस्काते।
खेतों का भी रंग बदलने, हर्षित हो किसान हैं जाते।।
लिए चेहरे पर खुशहाली को, सबकी आँखें हैं भर आई।
पहली बूंँद धरा पर आई, बजती जैसे हो शहनाई।।०४।।
जिसपर सुख-दुख सब निर्भर है, उसकी करने को अगुआई।
स्वागत करते हम पावस का, जैसे दुल्हन हो घर आई।।
नव उमंग उत्साह नया है, चहक उठी फिर से अमराई।
पहली बूंँद धरा पर आई, बजती जैसे हो शहनाई।।०५।।
रचयिता:- राम किशोर पाठक
प्राथमिक विद्यालय भेड़हरिया इंगलिश, पालीगंज, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978

