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पिता – रुचिका

Ruchika

पिता

पिता गहरी काली तमस में
बनकर आते हैं प्रकाश।
उनसे जुड़ी हुई है मेरे जीवन की
हर आस।

वह जेठ की भरी दुपहरी में
आते हैं बनकर हवा का झोंका।
मेरी हर गलती में उन्होंने
आकर है हमको टोका।

तपती गर्मी में बारिश की बनकर
आते हैं फुहार।
कभी प्रत्यक्ष रूप से उन्होंने नही
हम पर है लुटाया प्यार।

पिता ठिठुरती ठंड में आते हैं
बनकर अलाव
वह मेरे जीवन के हैं वट वृक्ष
उनसे ही मिलती है छाँव।

पिता मेरे जीवन की रहे थे
प्रथम पाठशाला।
वही लेकर आये मेरे जीवन में
प्रथम निवाला।

पिता मेरे जीवन की हैं
एक अनमोल कहानी।
उनके होने से ही चलती है जीवन में
हमारी मनमानी।

रूचिका
राजकीय उत्क्रमित मध्य विद्यालय तेनुआ गुठनी सिवान बिहार

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