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प्रतिकृति – रत्ना प्रिया

Ratna Priya

मातृ-भक्ति का मुझे मिला, जो प्रसाद नौनिहाल का,

नूतन दिवस है मेरी प्रतिकृति के दसवें साल का।

नन्हीं कली का मधु-स्पंदन, मेरी कोख में आया था,

उस क्षण की अनुभूति से, विस्मित मन हर्षाया था,

तन था बोझिल, मन था बोझिल, था अंतःकरण उल्लास में,

नव-सृष्टि की संरचना में, सहयोग के विश्वास में।

अद्भुत, सुखद स्पर्श था वो, चंचल-चपल नव-ताल का।

नूतन दिवस है मेरी प्रतिकृति के दसवें साल का।

रात्रि के प्रथम चरण में रक्ताभ चरण ले आई थी,

भूल गई मैं प्रसव पीड़ा, सन्मुख देख मुसकाई थी,

प्रथम रुदन का मधु-संगीत, कोयल-कूक-सी न्यारी थी,

भोर की प्रथम किरणें जैसी खिले कमल-सी प्यारी थी।

मेरी गोद है तेरी दुनिया हर पल देखभाल का।

नूतन दिवस है मेरी प्रतिकृति के दसवें साल का।

मैंने जन्म दिया है तुझको तूने माँ को जाया है,

ईश्वर-रूपी माँ शब्द का अर्थ समझ में आया है,

खेल-कूद का सुंदर बचपन पदार्पण दसवें वर्ष में,

पढ़-लिख कर हो योग तुम्हारा, जीवन के उत्कर्ष में।

परिश्रम करो व बढ़ो निरंतर, मंजिल हो कमाल का।

नूतन दिवस है मेरी प्रतिकृति के दसवें साल का।

मानवता के आदर्शों को सहज, समझ जब पाओगी,

तब जीवन के सच्चे पथ पर अविचल बढ़ती जाओगी,

साहस, हिम्मत परिश्रम से सब सरल, सहज आसान है,

होता सफल वही जीवन में, जो चलता अविराम है।

शुभ संस्कार व ईश-कृपा से कुचक्र मिटे हर व्याल का।

नूतन दिवस है मेरी प्रतिकृति के दसवें साल का।

रत्ना प्रिया

शिक्षिका (11- 12)

उच्च माध्यमिक विद्यालय माधोपुर

चंडी, नालंदा

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