प्रेम
प्रेम से बड़े न दूजो आन ।
प्रेम से बड़े न दूजो आन ।।
प्रेम जहाँ फलता – फूलता है ,
मिलता विजय , श्री, सम्मान ।
प्रेम बिना तो कुछ भी नही है ,
फीका लगता सकल जहान ।
जहाँ प्रेम की लौ है जलती ,
है उस मिट्टी का वरदान ।
है समर्पण प्रेम की भाषा ,
करे यह जन – जन का कल्याण ।
प्रेम से बड़े न दूजो आन ।
प्रेम से बड़े न दूजो आन ।।
जहाँ -जहाँ बह जाए अमृत ,
यह बहती गंग समान ।
प्रेम संदेशा जब – जब पहुँचे ,
सारा मिट जाए अभिमान ।
प्रेम पवित्रता का बंधन है ,
लाए जन -जन में मुस्कान ।
प्रेम के आगे झुक जाता है ,
सारा सकल जहान ।
प्रेम से बड़े न दूजो आन ।
प्रेम से बड़े न दूजो आन ।।
रचयिता :-
अमरनाथ त्रिवेदी
प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्च विद्यालय बैंगरा
प्रखंड बंदरा ( मुज़फ़्फ़रपुर
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