प्रेम सदा अपनाओ जग में ,
प्रेम सदा अपनाओ रे ।
लेकर कुछ नही जाना वन्दे ,
प्रेम सदा बरसाओ रे ।
आना -जाना लगा यहाँ पर ,
कोई नहीं रह पाया रे ।
नेह लगा लो प्रिय तुम वन्दे ,
प्रेम सदा अपनाओ रे ।
यहाँ का धन यहीं रह जाए ,
सोना तन ; माटी बन जाए ।
करनी ऐसी कर चलो यहाँ से ,
‘ अमर’ यहीं बन जाओ रे ।
प्रेम सदा अपनाओ वन्दे ——-
प्रेम नही तो कुछ भी नही है ,
इस पर नेह लगाओ रे ।
जीवन – धन ; प्रेम है वन्दे ,
प्रेम सदा सरसाओ रे ।
प्रेम तुम्हारा जीवन दर्पण ,
प्रेम ही सच्ची पूजा है ।
प्रेम जगत का सुन्दर चित्रण ,
प्रेम सरीख नही दूजा है ।
प्रेम सदा अपनाओ वन्दे —–
रचयिता :-
अमरनाथ त्रिवेदी
प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्च विद्यालय बैंगरा
प्रखंड – बंदरा ( मुज़फ़्फ़रपुर )
0 Likes