लगते कितने पुष्प अभिराम
गहरा चिंतन कर लो मानव।
फूलों-सा नित बनिए ललाम
करो नष्ट मत बनकर दानव।।
फूल प्रकृति का अनुपम उपहार
गुण सुरभित पा हंँसते रहिए।
करिए जीवन सदा उपकार
वसुधा का शृंगार है कहिए।।
तितली फूलों जब मँडराती
लगता सुंदर दिव्य निराला।
बगिया देखो क्षण मुस्काती
रखें सुरक्षित बन रखवाला।।
हे ईश! ये कैसे सजाया।
कितना मोहक फूल बनाया।।
देव कांत मिश्र ‘दिव्य’ मध्य विद्यालय धवलपुरा, सुलतानगंज, भागलपुर, बिहार
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