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बगिया की उदासी- संजय कुमार

आज बगिया क्यों उदास है,
बोलो मेरे पापाजी।
कल तक कितनी चहल पहल थी
गुलजार तुम्हारी बगिया थी।

माँ खुश थी, भैया खुश थे
ताई खुश थे, ताऊ खुश थे।
दादा-दादी, मामा मामी,
गाँव की सारी सखियाँ खुश थी।

गाँव की गालियाँ, फूल की कलियाँ
बलियां गेहूँ की खुश थी ।
लीची के फूल ,आम्र के मंजर
और तेरी बगिया सब खुश थी।

कल तक तुम भी चहक रहे थे,
माता के संग महक रहे थे।
बताओ सच-सच क्या तुम खुश थे?
या तुम उदासी छुपा रहे थे!
आज बगिया क्यों उदास है,
बोलो मेरे पापाजी ।

उदासी , एक रंग है बेटी,
खुशियों के यह संग है बेटी।
मेरी खुशी तो तुम हो बेटी।
पारिवारिक संस्कारों का तो
बेटी विदा एक अंग है बेटी ।
संजय कुमार
जिला शिक्षा पदाधिकारी
भागलपुर।

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