पढ़ने को नहीं दिल है करता,
पर पढ़ना बहुत जरूरी है।
सब हैं मुझसे आस लगाए,
पर खेलना भी मजबूरी है।।
खेलकूद में मन जब लगता,
पढ़ने को तब जी नहीं करता।
पापा के डर से पढ़ने बैठता,
तब रोने का दिल खूब है करता।।
गीता, रामू मुझसे निकले आगे,
कक्षा में अच्छे अंक भी लाते हैं।
मैं ही पीछे रह जाता इसमें,
कई सर भी मुझे बतलाते हैं।।
छोटी बहन एक है मुझसे,
समय पर पढ़ने बैठ जाती है।
पढ़ते देख लज्जित होता मैं,
वह अच्छे अंक भी लाती है।।
सर से डाँट पड़ती है अधिक,
कभी पापा से मार भी खा लेता हूँ।
मम्मी डाँटती है मुझ पर,
तब अपना सब्र भी खो देता हूँ।।
समझ नहीं आता है अब भी,
कैसे मैं पढ़ पाऊँगा।
बालपन के अनमोल समय को,
कैसे यादगार बनाऊँगा।।
मुझे लगता है पढ़ना ही,
विकल्प एकमात्र बचा मेरा।
कोई न अब मनमानी चलेगी,
सकल दोष जब मुझ पर घेरा।।
अब लक्ष्य एक ही साध चला हूँ,
समय से रोज पढ़ने जाऊँगा।
सबक कितना भी हो कठिन,
खूब मन से पूरा मैं कर पाऊँगा।।
अमरनाथ त्रिवेदी
पूर्व प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बैंगरा
प्रखंड- बंदरा, जिला- मुज़फ्फरपुर