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बीज की चाह- मेराज रजा

 

दाना हूँ मैं नन्हा-मुन्ना,

मिट्टी में हूँ गड़ा-गड़ा!

कैसी होगी दुनिया बाहर,

सोच रहा हूँ पड़ा-पड़ा!

मीठा-मीठा पानी पीकर,

अंकुर मैं बन जाऊँ!

बढ़िया खाद मिले तो खाकर,

खिल-खिलकर मुस्काऊँ!

बाहर आकर धीरे-धीरे,

बड़ा पेड़ बन जाऊँ!

नीले-नीले अंबर नीचे,

हवा संग लहराऊँ!

नन्हीं चिड़िया मेरे ऊपर,

अपना नीड़ बनाए!

सुंदर मीठे गीत सुनाकर,

मेरा मन बहलाए!

तपती गर्मी से थककर जब,

राहगीर भी आए!

शीतल-शीतल छाया पाकर,

खुश तुरंत हो जाए!

तेज हवा के झोंके खाकर,

मीठे फल बरसाऊँ!

मेरे पास चले जब आओ,

तुमको ख़ूब खिलाऊँ!

मेराज रज़ा
रा० उ० म० विद्यालय ब्रह्मपुरा,

मोहिउद्दीननगर, समस्तीपुर

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