विद्या:-रूप घनाक्षरी छंद
बुजुर्गों का ध्यान धरे,
हमेशा सम्मान करें,
परिवार की वे जड़, घर की वे बुनियाद।
हमेशा आशीष देते,
पिता जैसे हमें सेते,
सिर पर साया रहे, करते हैं फरियाद।
ईश से आशीष मांगें,
विपत्ति में रहें आगे,
उनके विछुड़ने पे, करते हैं उन्हें याद।
पोते के वे होते मित्र,
हाथों से सजाते चित्र,
दादा-दादी छत जैसे, दुनिया होती आबाद।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
म.वि. बख्तियारपुर पटना
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