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भोले भंडारी- जैनेन्द्र प्रसाद रवि

Jainendra

मनहरण घनाक्षरी छंद


गंगाजल जिन्हें भाता,
भूत-प्रेत से है नाता,
बेलपत्र पर रीझें, भोले जी भंडारी हैं।

इन्द्र चढ़ें एरावत,
गरूड़ जी हैं विष्णु भक्त,
बसहा वरद भाई, शिव की सवारी हैं।

गले डाले सर्प माला,
तन पर मृगछाला,
रंग-रूप देख लोग, कहते मदारी हैं।

काशी जा के वास करें,
श्मशान निवास करें,
धतूरा-भभूत-गांजा, भांग जिन्हें प्यारी है।

जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
म.वि. बख्तियारपुर, पटना

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