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मधुमास का यह प्यार है – अमरनाथ त्रिवेदी

Amarnath Trivedi

प्रकृति के अनंत गोद में,
छाई ऐसी बहार है।
मानों जीवंत हो निर्जीव भी,
ऐसा मधुमास का यह प्यार है।

अनन्तता के बोध  में,
यह जीवंतता की शान है।
मधुमास है यह उल्लसित,
ऋतुराज की यह तान है।

प्रकृति भी नए वसन में,
शोभा है कैसी पा रही।
मिलन के हर बिंदु पर,
सौरभ सकल दिखा रही।

हर पात हैं नए नए,
हर डाल है सुहा रही।
ऋतुराज ही वसंत है,
सबके दिलों पर छा रही।

उत्कर्ष की यह ऋतु है,
नए सृजन का भी हाथ है।
कोयल तान भर रही,
प्रकृति का भी साथ है।

अनन्तता की सृष्टि है,
जीवंतता के  बोध में।
अनगिनत सुर भी साध हैं,
वसंत के  प्रबोध  में।

स्वागत है मधुमास  का,
जो नव प्राण सबमें भर रहे।
दिलों  में  जो दूरियाँ  बनी,
उसे  भी  यह  मिटा रहा।

सृजन  की  यह शान है,
मृदु मुस्कान बनकर छा रही।
यह  सुरम्य  ऋतुराज  है,
जो सभी दिलों को भा रही।

अलौकिक दृश्य है खड़ा,
प्रवीणता ललक रही।
प्रकृति के अनंत गोद में,
नवीनता झलक रही।

भटके न  मार्ग में कभी,
विवेक है यह  कह रहा।
सृजन की  यह  तान है,
चमन में रंग भर  रहा।

रंग  है  वसंत की,
अनंत गाथा गा रही।
स्वविवेक से बढ़ें चलें,
यहाँ हर दिशा लुभा रही।

अमरनाथ त्रिवेदी
पूर्व प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बैंगरा
प्रखंड-बंदरा, जिला-मुजफ्फरपुर

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