मन के अपने सूने गगन से
मन के अपने सूने गगन से ,
पूछ क्यों कुछ करता नहीं है ।
क्या तेरा हौसला खो गया ,
तुमसे आग पानी में लगता नहीं है !
तुम अभी चाहो तो ,
मिट्टी को भी सोना बना लो ।
तुम यदि चाहो तो ,
कोयला को हीरा बना दो ।
शक्ति है तुम में इतना की ,
पत्थर भी पानी बनेगा ।
शक्ति है तुम में इतना की,
गगन भी तेरे चरण पड़ेगा ।
सदा हौसले से काम लो ,
यही तुम्हारी शक्ति सारी ।
इसे सदा ही पुष्ट रखो ,
यही जीवन में भक्ति तुम्हारी ।
शक्ति लेकर तब क्या करोगे ,
जब अंत समय आए तुम्हारा ।
उस हौसले को तब क्या करोगे,
रखे हो जब मन में ही सारा ।
कभी कर्त्तव्य से तुम मत चूको ,
जब सम्मुख है कर्त्तव्य सारा ।
भटक न जाओ कभी भ्रांति में ,
जब स्वप्न हो सुंदर तुम्हारा ।
अमरनाथ त्रिवेदी
पूर्व प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बैंगरा
प्रखंड बंदरा , जिला मुजफ्फरपुर

