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माँ – अश्मजा प्रियदर्शिनी

भू-तल पर जन-जीवन की तुम आशा हो।
माँ तुम चराचर जगत की परिभाषा हो।
तुम हीं लक्ष्मी, सरस्वती, तुमसे जीवन है,
माँ तू जण-गण की सब कलिमल नाशिनी हो।
तू हीं संहारिनी, तुझसे तुंग निर्माण,
सफलता शीर्ष चूमे, कर ऐसा कल्याण।
तेरे चरणों में श्रद्धा के पुष्प चढा़ऊँ,
तपश्चर्या मार्ग में न हो कोई व्यवधान।
माँ तू प्रचंडता में निर्मल-सी छाया है।
नियति ने जो लिखा वही उत्कृष्ट माया है।
तू निर्माण-विध्वंशक, तू हीं है जगजननी,
अंतस में तेरे संपूर्ण ब्रह्मांड समाया है।
माँ तू धरती पर हरियाली लाती हो।
रत्नगर्भा के शस्य पुष्पों को लहराती हो।
दामिनी घनपय तू, विपदा -संपदा में,
माँ तू श्रृष्टि का सम्यक-सार बन जाती हो।
अद्भुत तेरा रूप जय माँ विंध्यवासिनी।
अद्भुत तेरी शक्ति, अपार ज्ञान प्रदायिनी।
भक्तों के सब पाप हरो कष्टों से दो मुक्ति,
त्रिभुवन सुखदात्री तू सौभाग्य दायिनी।
दस भुजाओं वाली, तेरी ज्योति न्यारी।
सोलह श्रृंगार रचाती, दस शस्त्र धारी।
रौद्र, दीप्तिमान कभी प्रखर ममतामयी,
आदिशक्ति तू, महिमा अपरम्पार तुम्हारी।
दुष्टों का कर संहार, भव करे रखवाली।
दर पर शीश नवाऊँ, माँ शेरावाली।
अनुपम तेरी छवि, उग्र कभी कल्याण करें,
तू माँ अविनाशी मंगल करने वाली।
भक्ति-भाव से जो शरण में तेरी आया।
कर आरती, दर पर नैवेद्य चढ़ाया।
माँ आस्था समर्पण के भक्ति योग क्रिया से,
प्राकट्य सत्य है, भक्त ने अभिमत फल पाया।

अश्मजा प्रियदर्शिनी
पटना , बिहार

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