है कलयुग ,पाप चारो ओर छा रहा
रावण ,कंस, दुःशासन पग पग डोरे डाल रहा
धरती की रूह ,है काँप रही
कैसे बची रहेगी धरती , धरती माँ भाँप रही
अत्याचार बढ़ रहा
है मानवता घट रहा
मनुज ही मनुज का दुश्मन बन रहा
अब न होती है लड़ाई तीर और कमान से
मनुज ही मनुज को खत्म कर रहे रासायनिक हथियार से
धरती की रूह ,है कांप रही
कैसे बची रहेगी धरती , धरती मा भाँप रही।
ये कैसी मेरी संतान है
मुझको न इन पर अभिमान है
मैं पल पल इनके हाथो मर रही
मेरी तड़प की इन्हें पहचान नही
मैं कैसे बारम्बार कहूँ
मैं कैसे बारम्बार कहूँ
धरती की रूह है कांप रही
कैसे बची रहेगी धरती?
तेरी माँ तड़प रही!
तेरी माँ तड़प रही!
अवनीश कुमार ‘अवि’
उत्क्रमित मध्य विद्यालय अजगरवा पूरब
प्रखंड – पकड़ीदयाल
जिला – पूर्वी चंपारण (मोतिहारी)
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