निज कर्म से इंसान,
बनाता है पहचान,
पिता तो पालक होते, जन्म देती माता है।
बच्चों को देती संस्कार,
सिखाती है व्यवहार,
जननी के साथ होती, भाग्य की विधाता है।
अनेकों ही रिश्ते-नाते,
लोगों से हैं बन जाते,
मां बेटे की दुनिया में,अनमोल नाता है।
माँ होती प्रथम गुरु,
घर से ही पाठ शुरू,
बच्चा माता से पहला,शब्द सीख पाता है।
अपने भी छोड़ देते,
लोग मुंह मोड़ लेते,
मां के सिवा दुनिया में-कौन अपनाता है?
पुत्र तो कुपुत्र होता,
माता न कुमाता होती,
ममता की आंचल में, जीव छाँव पाता है।
नर हों या नारायण,
दुष्ट धर्म परायण,
माता कोख के सहारे, जगत में आता है।
सुरपति कृष्ण राम,
राजा-रंक आठों याम,
माता चरणों के आगे, सिर को नबाता है।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
म.वि. बख्तियारपुर, पटना
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