मां के बिना अब मेरा देखो , सूना यह संसार है।
उदासी है घर में छाई, टूटा गम का पहाड़ है।
खोई है मेरे घर की खुशियां , फींका अब त्योहार है।
ममता का रंग उतरा तन से,गम का बहा बयार है।
हर पल याद आती है मेरी मां,दिल रोता हरबार है।
तिलक लगाकर कौन चूमेगी, यादों में उनका प्यार है।
मां होती है लक्ष्मी जैसी, देती ममता दुलार है।
मां की गुण को कैसे बखानें,वह तो अनंत अपार है।
पिता में रूप निरखकर उनकी, करना सेवा सत्कार है।
माता – पिता हीं हर बच्चों के जीवन का आधार है ।
माता- पिता जब साथ हों अपने, खुशियां का अंबार है ।
उनके हीं पावन चरणों में स्वर्ग का खुलता द्वार है ।
स्वरचित:-
मनु रमण चेतना,
पूर्णियाँ,बिहार
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