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मेरी मां – विवेक कुमार

Vivek kumar

आओ सुनाता हूं अपनी कहानी,
निःस्वार्थ प्रेम की कहानी, अपनी जुबानी
मां के छोटे शब्द में ब्रह्मांड है समाई,
दुख दर्द सहे ठोकरे खाई,
जन्म दे मुझे धारा पर लाई,
प्रतिकूल परिस्थितियों को ठेंगा दिखाई,
खुद भूखे रह मुझे पिलाई,
समाज के तिरस्कारों को आन बनाई,
बहते आंसू आंचल में सुखाई,
मेरी परवरिश का जिम्मा उठाई,
झाड़ू लगाई, पोंछे लगाये,
दूसरे घर बर्तन धो, चंद रुपए कमाये,
फिर भी मेरे सारे नाज नखरे उठाती,
गोद में बिठाती, लोरी सुनती,
समय बिता कुछ बड़ा हुआ,
मां की तकलीफों का तब भान हुआ,
असहाय संग लाचार था,
छोटा मगर समझदार था,
मां परवरिश में कोई कसर न छोड़ती,
तिनका तिनका जोड़ घर को चलाती,
बड़े प्यार से मुझे खिलाती,
खुद भूखे प्यासे वो सो जाती,
समय बदला स्थिति में आया सुधार,
फिर भी न बदला मां का प्यार,
आज भी जब होता परेशान,
मां की गोद में सर रखते, होता निदान,
निस्वार्थ प्रेम की प्रतिमूर्ति,
सारे खुशियों की करती पूर्ति,
मां के त्याग और बलिदान को,
न कर सकता है कोई पूरी,
मदर्स डे पर सभी माताओं की हर मुरादे हो पूरी,
ऐसी अभिलाषा दिल की गहराईयों से है मेरी,
विवेक कुमार
उत्क्रमित मध्य विद्यालय,गवसरा मुशहर
मड़वन, मुजफ्फरपुर

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