मैं था जो मैं हूँ वही,
चेहरा बदला,प्रण है वही,
बढ़ते कदम,चलती साँसे,
धड़कन की धक-धक में वही।
मैं था जो मैं हूँ वही।
जमाने की भीड़ में,
मुखौटा लिए हैं, सत्य का सभी,
खड़ा मिले जो साथ सत्य के,
मैं हूँ सत्य की मूरत वही।
मैं था जो मैं हूँ वही।
करवट बदले वक्त भी,
मुझे बदलना शोभा देता नहीं,
जो न बदले साथ वक्त के,
मैं हूंँ सत्य की मूरत वही।
मैं था जो मैं हूँ वही।
पाप होता सत्य कहना,
साथ चले जो झूठ के,
होता वही सबका अपना,
भीड़ में भी अकेले खड़ा जो,
पहचान सत्य की है वही।
मैं था जो मैं हूँ वही।
वह क्या है? वह कौन है?
मन जिसके लिए बैचेन है,
बेचैन मन का चैन जो,
उस सत्य की तलाश चली।
मैं था जो मैं हूँ वही।
पद क्या? नाम क्या?
सूर्य की पहचान क्या?
रौशनी से जगमगाती,
कर दे धरा को वही।
मैं था जो मैं हूँ वही।
अपने आप की ज्योति बनूँ मैं,
खुद जलकर भी न जलूँ मैं,
ऐसी है पहचान मेरी
जलकर भी कर दूँ
दूजों के लिए सही।
मैं था जो मैं हूँ वही।
क्या ढूँढता उठते कदम से,
पहचानता नैनों के नभ से,
नहीं मिला वो सूर्य,
तलाश जिसकी जन्मों जन्म से,
मैं था जो मैं हूँ वही
रवींद्र कुमार
यू.एम.एस. सौरबाजार, सहरसा