Site icon पद्यपंकज

रंगोत्सव की राधा- रसधारा- सुरेश कुमार गौरव

बरसाने की गलियों में, आज खिला है रंग,
बृज की माटी महक रही, प्रेम भरा है संग।
राधा संग गोविंद खेले, स्नेह भरा है फाग,
गुलाल-गुलाबी उड़ चले, छेड़ें प्रेम का राग।

मथुरा नगरी झूम रही, नाचे वृंदावन,
कृष्ण की बंसी गूँजे, प्रेम करें अर्पण।
राधा के रस में भीगे, सखियाँ करें सिंगार,
नेह सुधा की धार बहे, नभ तक जाए पुकार।

फागुन आया प्रेम भरा, रास रचे आकुल,
कान्हा के संग रंग गई, राधा मन की व्याकुल।
सावन-भादों क्या करें, हर दिन होरी प्यारी।
प्रेम रंग में डूब गई, बृज की दुनिया सारी।

गोप ग्वाल सब गा उठे, माधव-माधव गान,
रंग बरसें प्रेम के, भूलें मन अभिमान।
आज सजी है प्रेम पिचकारी, नेह भरी मुस्कान,
सुरेश कहे, इस रसधारा में, जीवन हो रसगान!

सुरेश कुमार गौरव,
‘प्रधानाध्यापक’
उ. म. वि. रसलपुर, फतुहा, पटना (बिहार)

2 Likes
Spread the love
WhatsappTelegramFacebookTwitterInstagramLinkedin
Exit mobile version