सजी है अवधपुरी
नवेली दुल्हन जैसी,
सिंहासन बिराजेंगे, सबके दुलारे राम।
संत-भक्त-साधकों का
सपना साकार हुआ,
बैठे थे वे सदियों से, विश्वास की डोर थाम।
भारत के नर-नारी
उन पर बलिहारी,
अयोध्या में आ बसा है, एक साथ चारों धाम।
देख मनोहारी छवि
सुध-बुध खोया “रवि’,
कब से निहार रहा, अपलक- अभिराम।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
म.वि. बख्तियारपुर पटना
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