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लोक-लज्जा- अवनीश कुमार

Awanish Kumar Avi

ख़ून से लथपथ
एक काया.

फ़ेंका गया था
लहरताल मे उपजी
झाड़ियों मे

रो रहा था शिशु
बिलख-बिलख कर

ईश्वरीय संयोग हुआ कुछ ऐसा
नव विवाहित युगल की बग्घी
उतरी
आराम के दो पल बिताने को

तभी शिशु का रुदन सुन
दौड़े नव युगल

हाय!हाय!
किस कर्मनाशीनी ने यह कुकर्म किया.
नव युगल ने न दो क्षण व्यर्थ किया

सीने से लगाकर गले से भरकर दोनों ने मात-पिता जस प्यार किया
मात-पिता बनने का जैसे ही तत्क्षण निर्णय लिया

लोक लज्जा ने
नव युगल को विषम संकट
मे फाँस लिया..

स्थिति बड़ी भयावह थी

किन्तु

शिशु को काल के गाल में छोड़ कहाँ जाना था.

दो पल मे पुनः नव युगल ने एक लम्बी सांस भरी
आ जाए कोई बंदिशे अब उसकी परवाह कहां?
लोक-लज्जा की दिवार गिरी

कबीर नाम देकर नव युगल नीरू -नीमा ने अपना नाम सार्थ किया
अपना नाम सार्थ किया.

अवनीश कुमार
व्याख्याता(बिहार शिक्षा सेवा)
प्राथमिक शिक्षक शिक्षा महाविद्यालय विष्णुपुर, बेगूसराय

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