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वट-सावित्री पर्व – रत्ना प्रिया

Ratna Priya

संस्कृति है यह भारत की, विवाह के आदर्श का |

वट-सावित्री पर्व है, दांपत्य के उत्कर्ष का ||

अश्वपति की तप साधना, हुई अद्भुत वरदायी है,

दैवी सविता का तेज , सावित्री बनकर आई है,

सावित्री आरण्यक पहुंची, सत्य के संधान को,

सत्यवान को वरण किया, पतिव्रत्य के प्रमाण को,

आत्मिक मिलन के योग में, क्षण है पावन हर्ष का |

वट-सावित्री पर्व है, दांपत्य के उत्कर्ष का ||

सप्तपदी के सप्त कदम में, जन्म-जन्म के नाते हैं l

परस्पर स्नेह के प्रति साथी, न्योछावर हो जाते हैं,

हर सुख-दु:ख में साथ निभाना, इस रिश्ते की धुरी है,

अर्द्धनारीश्वर रूप में, शिव-शक्ति साधना पूरी है,

सुखी गृहस्थ-जीवन को, ऋषियों के परामर्श का |

वट-सावित्री पर्व है, दांपत्य के उत्कर्ष का ||

सावित्री मानवता का, उत्कर्ष लेकर आई है,

मानवी काया में भी, दैवी चेतना पाई है,

डटी रही मृत्यु के पीछे, यम का पाश छुड़ाने को,

श्री, समृद्धि, सौभाग्य को, मुट्ठी में भर लाने को,

संसार में रहते, आध्यात्मिक, पथ के संघर्ष का |

वट-सावित्री पर्व है, दांपत्य के उत्कर्ष का ||

आज की युवा पीढ़ी, मृगतृष्णा में फूल रही ,

भूले-भटके राहों में, सपनों में है झूल रही ,

हे पुरुषों ! सीता के लिए, राम तुम्हें बनना होगा,

एकपत्नीव्रत धारण कर, कर्तव्य-पथ चलना होगा,

पश्चिम का अंधानुकरण ही, कारण है अपकर्ष का |

वट सावित्री पर्व है, दांपत्य के उत्कर्ष का ||

हे नारियों ! जाग उठो अब , दृढ़ उज्ज्वल चरित्र बनो,

धर्म ,शील पतिव्रत्य गुणों से, तपकर युक्त पवित्र बनो,

वीर संतानों की जननि, कहीं से भी कमजोर नहीं,

पाप-पंक में राह भटका दे, ऐसी कोई डोर नहीं,

तुम्ही आधार हो, दुर्लभ मानव-जीवन के निष्कर्ष का |

वट सावित्री पर्व है, दांपत्य के उत्कर्ष का ||

रत्ना प्रिया ,
मध्य विद्यालय
हरदेवचक, पीरपैंती, भागलपुर

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