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वरदान है यह योग का – रत्ना प्रिया

Ratna Priya

स्वस्थ शरीर , स्वच्छ मन व आत्मिक संयोग का,
मानवी काया दिव्य हो , वरदान है यह योग का ।

पंचभूत निर्मित काया में, प्रत्येक तत्व सम रहे,
योग , आसन, मुद्रा से न स्थिति विषम रहे,
आदि योगी शिव तो, बैठे हैं नित ध्यान में,
स्थितप्रज्ञ रहें सदा, मान में , अपमान में |
ब्रह्मांड के संचालन में, अनुशासित प्रयोग का |
मानवी काया दिव्य हो , वरदान है यह योग का ।

यम, नियम, आसन व प्राणायाम, प्रत्याहार का,
धारणा, ध्यान, समाधि, अष्टांग के उपहार का,
पतंजलि के योग सूत्र से, विश्व का कल्याण हुआ ,
योग अपनाकर मनुज ने, मुक्ति का सोपान छुआ |
संसार में रहकर दमित, इच्छाओं से नियोग का |
मानवी काया दिव्य हो , वरदान है यह योग का |

स्वस्थ शरीर, स्वच्छ मन व शालीन समाज हो,
तनाव रहित जीवन हो, प्रफुल्लित आवाज हो,
इर्ष्या, द्वेष, आलस्य त्यागें, उचित आहार-विहार करें,
योगयुक्त, रोगमुक्त बनें, स्व-जीवन से प्यार करें |
प्रकृति के आँगन में खेलें, दमन करें उपभोग का |
मानवी काया दिव्य हो , वरदान है यह योग का ।

ज्ञान, भक्ति, योग का, नित नियम से पान करें,
आरोग्य-सुख, दीर्घायु-सम, अमृत का सम्मान करें,
देव-दुर्लभ काया को, आओ निरोग बनायें हम,
भारत की वैदिक संस्कृति, विश्व में फैलाएँ हम |
पुनः योग माध्यम बने , जन-जन के उपयोग का |
मानवी काया दिव्य हो , वरदान है यह योग का ।

स्वस्थ शरीर , स्वच्छ मन व आत्मिक संयोग का,
मानवी काया दिव्य हो , वरदान है यह योग का ।

रत्ना प्रिया ,
मध्य विद्यालय,
हरदेवचक, पीरपैंती, भागलपुर

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