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वीर कुँवर सिंह – रत्ना प्रिया

वीर कुँवर, तुम मगध भूमि के, भारती के लाल थे,
अंग्रेजों को मार भगाने, संहारक व काल थे।

अस्सी वर्ष की तरुणाई ने, शत्रु का प्रतिकार किया,
गुरिल्ला युद्ध में थे कुशल, शूल बन प्रहार किया।
आरा-भोज की वीर वसुधा, मातृभूमि कुँवर की,
ऋण चुकाने निकला सिंह, देर नहीं क्षण भर की।
वीर बाँकुरा युद्ध-समर में, भारती के भाल थे,
अंग्रेजों को मार भगाने, संहारक व काल थे।

अंग्रेजों ने छलनी कर दी, लगी हाथ में गोली,
वीर कुँवर की टोली ने, तब भारत की जय बोली।
माँ गंगा को भेंट चढ़ाई, अपनी वाम भुजा को,
हस्त ने गंगा को दान दिया, स्वयं थाम भुजा को।
सिंह के दृढ़-निश्चय फिर भी, अडिग व विकराल थे,
अंग्रेजों को मार भगाने, संहारक व काल थे।

रत्ना प्रिया – शिक्षिका (11–12)
उच्च माध्यमिक विद्यालय, माधोपुर, चंडी, नालंदा

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