शुचि मन-भावन श्रावण आया
आगत को लख हों पुलकित मन।
अम्बर बादल चहुँदिशि छाया।
दृश्य मनोहर बरसा-सावन।।
कृषक मुदित मन गीत सुनाते
रिम-झिम बूँदें हैं हर्षाती।
सुमन विटप मन को सरसाते।
कोयल मधुरिम तान लगाती।
पुष्प-बाग में झूले लगते
चुन्नी मुन्नी प्रमुदित होते।
भाव हृदय में सुन्दर पगते
कभी नहीं वे आपा खोते।।
अपने मन को खूब सजा लें।
झूला झूलें चंग बजा लें।।
देव कांत मिश्र ‘दिव्य’ मध्य विद्यालय धवलपुरा, सुलतानगंज, भागलपुर, बिहार
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