वीणा वादिनी, ज्ञान की देवी, माँ शारदे, करूँ मैं अर्पण।
बुद्धि, विवेक, नीति की ज्योति,तेरे चरणों में समर्पण॥
बालक बनें सुमति के धानी, माँ, दो शुभ संकल्प विचार।
सत्य, धर्म, निष्ठा के पथ पर, रखें सदा अनुराग अपार॥
शिक्षा से हो तेज़ उजागर, अंधकार सब दूर टले।
शब्दों में हो ज्ञान की गंगा, हर हृदय में प्रेम जगे॥
बल, संयम, मर्यादा बढ़े,संस्कारों की बहे बयार।
ऐसा समाज बने कि जिसमें,रहें सदा सुख-शांति अपार॥
हे माता! यह वरदान देना, हर मन में शुभ भाव पले।
कर्म पथ पर हम बढ़ें निरंतर, ज्ञान की ज्योति जगमग जले॥
सुरेश कुमार गौरव,
उ. म. वि.रसलपुर,फतुहा, पटना,बिहार
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