साक्षात भगवान
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करते हम गुरु वंदना,धर चरणों का ध्यान,
जिनकी कृपा कटाक्ष से,मिटे सकल अज्ञान।
गुरु कृपा से सर्वसुलभ, ज्यों करते गुणगान।
शरणागत हो जाते हीं, तजकर निज अभिमान।
मित्र-भाई से बढ़कर हैं, माता-पिता समान,
इस अखिल ब्रह्माण्ड में, साक्षात् भगवान।
गुरु बडे़ हैं हितकारी,मानता सकल जहान।
धर्मशास्त्र और वेदों में, हैं अनेकानेक प्रमाण।
जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’
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