दरिया में जल मिले,
सागर में नदियाँ भी,
धरती आकाश मिल सृष्टि देते उपहार।
कहीं-कहीं छाँह धूप,
चुभते दिलों में शूल,
मिटती न तृष्णा कभी मिथक न हो प्रहार।
माटी से जो करे प्यार,
मुख मत मोड़ो यार,
क्षुब्ध क्षुधा बुझ जाती करने से अल्पाहार।
चाहत की अगन में,
दिन – रात जलन में,
विचलित ठीक नहीं करने से परिहार।
एस.के.पूनम(पटना)
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