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स्वदेश पर मिटनेवाले- रत्ना प्रिया

Ratna Priya

रत्ना प्रिया

स्वदेश पर मिटनेवाले

स्वतंत्र, समुन्नत देश के हम, नागरिक कहलाते हैं।
स्वदेश पर मिटनेवाले को, श्रद्धा-सुमन चढ़ाते हैं।

सन् सत्तावन याद करो, प्रथम आजादी संग्राम को,
जन-जन को झकझोरा जिसने, हर नगर हर ग्राम को,
लक्ष्मीबाई, वीर कुँवर व गूँजी मंगल की वाणी,
अंग्रेजों को धूल चटा वे, लिख गए अमर कहानी,
उनकी गौरव-गाथा से हम, नित प्रेरणा पाते हैं।
स्वदेश पर मिटनेवाले को, श्रद्धा-सुमन चढ़ाते हैं।

नवयुवकों ने रक्त से, भारत माता को सींचा है,
भगत, बिस्मिल, चंद्र‌शेखर सम पुष्पों का बगीचा है,
जालियाँबाग की कुर्बानी, इस मिट्टी में महक रही,
गुलामी के जंजीर से मुक्त हो, चिड़ियाँ चहक रही,
इस पावन मिट्टी का तिलक कर, हम धन्य हो जाते हैं।
स्वदेश पर मिटनेवाले को, श्रद्धा-सुमन चढ़ाते हैं।

जिन वीरों ने प्राण गँवाये, भारत माँ की शान में,
उनके बल से लहर रहा है, तिरंगा आसमान में,
स्वराज हमारे देश में, हम कहलाते स्वाधीन हैं,
पर, हालत यह देखो अपनी, मानो हम आधीन हैं,
विसंगतियाँ दूर करेंगे, ऐसी शपथ उठाते हैं।
स्वदेश पर मिटने वाले को, श्रद्धा- सुमन चढ़ाते हैं।

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