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हमारे जमाने की ईद- संजय कुमार

बहुत याद आती है ईदें पुरानी
नानी और दादी के किस्से कहानी
हिन्दू न हम थे न मुसलमान मीनू
वो खुशियाँ व मस्ती, सबकी थी साझी
मुहल्ले के मस्जिद और मंदिर भी साझा
इधर वो भी बैठे, उधर को जो हम भी
आस्था थी सबकी, नहीं राजनीति
जब कान्हा थे उनके और अल्लाह हमारे।

बहुत याद आती है ईदें पुरानी
हिन्दू न हम थे न मुसलमान खालिद
याराना थे रिश्ते घरों के हमारे
वे रिश्ते थे ऐसे की आँखों से सुनले
और ओठों की कम्पन को दिल से जो देखे
झलकती अपनापन कर्मों में सबकी
दुःख भी था साझा और सुख भी था साझा
रामनवमी थे उनके और ईदें हमारी
ऐसे वो दिन थे पुराने हमारी।

बहुत याद आती है ईदें पुरानी
हिन्दू न हम थे न मुसलमान मंशुर
लवों पे वो हँसियां न दिखती किसी के
कहाँ खो गया है बता दे भी कोई
हाथें मिलाते गले जो अभी भी
पर आँखों में रौनक, न खुशियाँ है तबसे
हकीकत में ये थी हमारी कहानी
बहुत याद आती है ईदें पुरानी
नानी और दादी के किस्से कहानी।

संजय कुमार
जिला शिक्षा पदाधिकारी
अररिया,बिहार

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