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हरियाली विकसाएँ हम- रत्ना प्रिया

Ratna Priya

सूरज के प्रचण्ड ताप से , अब नहीं कुम्हलाएँ हम ।

आओ करें श्रृंगार धरा का, हरियाली विकसाएँ हम ॥

पंचभूतों की प्रकृति में, नित्य विष हम घोल रहे,

अपने हाथों स्वयं की मृत्यु, के दरवाजे खोल रहे,

क्षणिक सुखों के उपभोग को, प्रदूषण नहीं बढ़ाएँ हम ।

आओ करें श्रृंगार धरा का, हरियाली विकसाएँ हम ॥

स्वच्छ जल हो, स्वच्छ हो वायु, इस पर तनिक विचार करें,

प्रकृति का दोहन करके, स्वयं को नहीं बीमार करें,

सृष्टि की इस अमूल्य निधि को,यूँ ही नहीं गंवाएँ हम ।

आओ करें श्रृंगार धरा का, हरियाली विकसाएँ हम ॥

वृक्षविहीन हो रही धरा जब हरी–भरी हो जाएगी,

झुलस रही, बिलख रही, प्रकृति मंद−मंद मुसकाएगी,

वृक्षारोपण सिंचन करके, तरु को मित्र बनाएँ हम ।

आओ करें श्रृंगार धरा का, हरियाली विकसाएँ हम ॥

स्वयं पर लगे मीठे, फल को, तरुवर कभी नहीं खाते,

परहित की भावना से, परोपकार की रीत निभाते,

देववृक्ष के उपकारों को, नित- नित शीश झुकाएँ हम ।

आओ करें श्रृंगार धरा का, हरियाली विकसाएँ हम ॥

रत्ना प्रिया
शिक्षिका (11 – 12)
उच्च माध्यमिक विद्यालय माधोपुर
चंडी ,नालंदा

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