भाषा की डोरी थामकर चलना सिखाया हिंदी ने
भेदभाव को भूलकर है सबको अपनाया हिंदी ने
अपनी मधुरता में है सब को नहलाया हिंदी ने
हिन्दी के सभी शब्द हैं प्रेमिल है प्रेम सिखाया हिंदी ने
सभी भाषाओं की जननी बन खुद को धनी बनाया हिंदी
जिसने भी है जीवन में उतारा सबको गले लगाया हिंदी
भाषा से बनती है व्यक्तित्व ऐसा पाठ पढ़ाया हिंदी
इस बुलंदियों के बदौलत ही राष्ट्रभाषा कहलाया हिंदी
मुझमें में है नम्रता ,विनम्रता मैं भाषा की तन्मय हूं।
मुझसे ही हैं ये ,भाषाएं मैं भाषाओं की उद्गम हूं ।
छेड़ा है जिसने मेरे तार को होकर के सदा उत्सुक
हुआ है मुझसे मंत्रमुग्ध मैं ऐसी मधुरिम सरगम हूं ।
मैं बांधकर शब्दों की डोरी चलती साथ हरदम हूं।
मैं आसान भी हूं कहीं कहीं किसी पर भारी भरकम हूं
भाषाएं बहुत हैं इस जग में , मैं इन सबसे उत्तम हूं।
उर्दू है मेरी सगी बहन के मानिंद मैं उसकी हमदम हूं
एम० एस० हुसैन “कैमूरी” मोहनियां कैमूर बिहार