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हृदय का कूप माँ – अवनीश कुमार

 

माँ! केवल माँ नहीं है वो,

घर का दीया है,

दीये की बाती है,

चूल्हे की आग है,

तवे की रोटी है,

घर का द्वार है,

द्वार की चौखट है,

मंदिर की देवी है,

देवी का प्रसाद है,

मंदिर की धूप है,

विशाल हृदय का कूप है,

प्रसाद का आचमन है,

आचमन का गंगा जल है,

घर का आँगन है,

आँगन की तुलसी है,

तुलसी का संकल्प है,

तुझ-सा न कोई विकल्प है,

आँचल की छाँव है।

अरमानों का पंख है,

भूखे की भूख है,

प्यासे की प्यास है,

मिठाई की मिठास है,

ईश्वर होने का विश्वास है तू

तेरे बारे में माँ मैं और क्या लिखूँ?

जुड़ते नयन की आस है।

मेरी साँसों में बसी साँस है तुम

मेरे जीवन का हर क्षण है तुम

तेरे संस्कारो की थाती का पण हूंँ मैं

अवनीश कुमार

व्याख्याता
बिहार शिक्षा सेवा

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