अज्ञानरूपी तिमिर दूर कर हम
ज्ञान की अलौकिक रश्मि फैलाएं,
आइए हमसभी मिलकर फिर
दिव्यज्ञान की एक दीप जलाएं।
गुरु के ऋण को कहाँ कोई चुका पाया है
गुरु अंधकूप से निकाल,हमें प्रकाश में लाया है,
काम,क्रोध,लोभ,मोह,मद के बंधन से
गुरु ने ही अपने ज्ञानज्योत से छुड़ाया है।
शिक्षक राष्ट्र निर्माता है
प्रज्ञावान हमें बनाते हैं,
हमें प्रकाश देकर वो खुद
मोमबत्ती सा जल जाते हैं।
हमारी गलती को करके क्षमा
हृदय में रखते हैं करुणा और दया
सत्कर्म के मार्ग पर चलना सिखाए
भूले,भटके को राह दिखाएं।
आइए अंधेरे को मिटाने के लिए
हम मिलकर ज्ञान की दीप जलाएं।
स्वरचित मौलिक रचना
संजय कुमार (अध्यापक )
इंटरस्तरीय गणपत सिंह उच्च विद्यालय,कहलगाँव
भागलपुर,(बिहार)
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