होली
आई है सच में
फिर अबकी बार,
फिर सजायेंगे हम
रंगों की बारात,
खुद के कूचे से बनायेंगे,
रंगों में डूबे हंसते चेहरे,
कुछ मेरी तरह,
कुछ तुम्हारी तरह,
गायेंगे फाग,
मिले जुले राग में,
पुरबा की बयार के संग
झूमेंगे हम,
शरारतें करेंगे हम,
अपनी अपनी चिंताओं से,
दुहरा सकेंगे
अपना अपना विश्वास,
इन रंगों के साथ,
जीवन के साथ,
गुलाल से लाल गालों पर
उभर सकेंगी
वह स्मृतियां कुछ…
बचपन के टुकड़े कुछ,
जवानी के किस्से कुछ…
जिसमें फिर से
भरे जाने हैं रंग,
मेरे संग,
तुम्हारे संग…
-गिरिधर कुमार,शिक्षक,उत्क्रमित मध्य विद्यालय जियामारी, अमदाबाद, कटिहार
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