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झांसी की रानी-लवली कुमारी

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झांसी की रानी

तू नारी है कि ज्वाला है,
परचम तेरा ही लहराता है।
सन सत्तावन में जो आई क्रांति,
वह तेरी ही विजय गाथा है।
आंखों में तेरी चिंगारी,
तू जलने नहीं जलाने आई थी।
पेशवा, नाना के संग खेला करती,
बरछी, कटार तलवार तेरी सहेली थी।
बचपन से ही सबकी प्यारी,
सब की मनु कहलाती थी।
गंगाधर से विवाह करके,
मनु बनी झांसी की रानी थी।
पर विधाता ने तो कुछ और सोचा,
हुई षड्यंत्र की शिकारी थी।
राजा, साम्राज्य छिन गया उनका,
फिर वह रह गई अकेली थी।
बुझा उनका कुल का दीपक,
जब तूने दी कई कुर्बानी थी।
तात्या टोपे, नाना धून्धू पंत सबने तेरी,
हिम्मत बढ़ाई थी।
तेरा विश्वास अडिग रण बांकूडा,
बनकर अपनी वीरता दिखलाई थी।
दूर फिरंगी को करने की तूने,
मन में ठानी थी।
जहां हर नारी झांसी में,
लक्ष्मीबाई कहलाती थी।
तू नारी नहीं साक्षात,
अवतार दुर्गा थी।
अपने युद्ध कौशल से तूने,
फिर से बहार लाई झांसी में।
दूर फिरंगी से वापस लाई,
अपना साम्राज्य झांसी में।
पर षडयंत्रों को रास न आया,
उसने फिर से अपनी नीति चलाई थी।
पर रानी ने अंतिम सांस तक,
भी अपनी हिम्मत बढ़ाई थी।
दृढ़ निश्चय, आत्मविश्वास ही उसकी,
सबसे बड़ी संपत्ति थी।
रण बाकूडा बनकर उसने अंतिम,
सांस तक अपनी रणनीति चलाई थी।
तेरा विश्वास अडिग जिसने अपनी,
चिता में आग स्वयं लगाई थी।
वह नारी नहीं ज्वाला थी,
जो झांसी की रानी कहलाई थी।

लवली कुमारी
उत्क्रमित मध्य विद्यालय अनूपनगर
बारसोई कटिहार

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