कुदरत-प्रीति कुमारी

कुदरत

कुदरत तेरे रंग हजार,
इस जीवन रूपी नैया का,
है तू ही खेवनहार।
कुदरत तेरे रंग हजार।
कभी तू देता ढेरों खुशियाँ,
कभी दु:खों के पहाड़,
और कभी तू करता जग में
नित्य नए चमत्कार,
कुदरत तेरे रंग हजार।
तेरी माया समझ नहीं पाते
गलतियों को हम दोहराते
अन्तरमन के झंझावात में
हम निरंतर उलझते जाते,
मन में है प्रश्नो का अम्बार,
कुदरत तेरे रंग हजार।
अब तू ही बता हे पालनहर,
तेरी माया अपरंपार,
कुदरत तेरे रंग हजार।
तू ही अब कोई राह बता,
तू ही संवार इस जीवन को,
तेरा ही सब-कुछ किया धरा,
कर सकता तू ही नव संचार
कुदरत तेरे रंग हजार।
जब-जब हम पर विपदा आई,
नित रूप बदल कर तुम आये,
निज दानवरूपी संकट का,
करते रहते हो तुम संहार,
कुदरत तेरे रंग हजार।
आज भी जग है संकट में,
यह भी तेरी ही लीला है,
आ जाओ हे पालनहार,
यह मुसीबतों की बेला है,
अब तुम ही बेरा पार करो,
इस दानव का संहार करो,
आकर लोगों के जीवन में भर दो
खुशियाँ अपरंपार,
कुदरत तेरे रंग हजार।

प्रीति कुमारी
कन्या मध्य विद्यालय मऊ
विद्यापतिनगर समस्तीपुर

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