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तपती-जलती वसुंधरा – मास्टर गौतम भारती

Gautam

कई दिनों से उमस बड़ी है,
तपती-जलती वसुंधरा ।
कहाँ खो गए नभ में बादल?
कर दया आ बरस जरा,
कर दया आ बरस जरा ।।

     झुलसी हुई हरियाली देखो, 
     मास श्रावण को कोस रहा। 
    टकटकी निहारता यहां खेतिहर 
      कर कृपा कुछ नज़र दिखा ।
      दूर कहीं से आ जा बादल 
         कुछ बूंदें पानी के ला ,
    टकटकी निहारता यहां खेतिहर,
      कर दया कुछ बरस तो जा, 
      कर दया कुछ बरस तो जा ।।

दरारें आ गई धान खेत में,
नदियों का पानी सूख रहा।
प्यासे-व्याकुल जीव यहां पर,
इस व्याकुलता को पाट जरा।
गाछ-वृक्ष और पुष्प-कुसुम भी
झुलस-झुलस दम तोड़ रहा।
शिव-सुत-वाहन व्याकुल होकर,
मूक-बधिर बन देख रहा ,
मूक-बधिर बन देख रहा ।।

       कई दिनों से उमस बड़ी है, 
       तपती-जलती वसुंधरा ।
       कहाँ खो गए नभ में बादल?
       कर दया आ बरस जरा, 
       कर दया आ बरस जरा ।।

दुबके परे हैं सहमे दादूर,
धरती की कोख कब से ?
बरसा रहा है सूरज देखो,
अग्नि की बाण जब से ।
कोई बता दे इनसे मिलकर
है कौन ये महीना ?
क्यों कहर बरपा रहा तू?
ऐ पिंडों में नगीना (सूरज),
ऐ पिंडों में नगीना ।।
व्यथित होकर कहती है,
मौन व्रत रख ये धरा…
कहाँ खो गए नभ में बादल?
कर दया आ बरस जरा ,
कर दया आ बरस जरा ।।

      कुछ पूजते तुम्हें आज भी, 
      कुछ हताश गालियां देते हैं। 
      व्याकुल मन ये जनमानस का,
      जब सूखे में नाव खेते हैं ।।

आओ पुरवैया रानी आओ ,
साथ में बादल को भी लाओ।
बूंद -बूंद को तरसे धरती,
घनघोर घटा बन ऊपर छाओ।
रिमझिम बरसो, झमझम बरसो,
फिर मन भर तौल के तुम बरसाओ।
जल से जीवन, है हरियाली
और प्रफुल्लित वसुंधरा….
कहाँ खो गए नभ में बादल ?
कर दया आ बरस जरा,
कर दया आ बरस जरा ।।

       कई दिनों से उमस बड़ी है, 
       तपती- जलती वसुंधरा ।
       कहाँ खो गए नभ में बादल, 
       कर दया आ बरस जरा, 
       कर दया आ बरस जरा ।।

मास्टर गौतम भारती

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