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बेबस शिक्षक- विवेक कुमार

vivek kumar muzaffarpur

बड़े जतन से की पढ़ाई,
बिना नींद बिन जम्हाई,
बड़े शौक थे देंगे ज्ञान,
बढ़ेगा मान और सम्मान,
यही सोच ले भरी उड़ान,
मिली शिक्षा की कमान,
बन गया शिक्षक महान,
न रहा खुशी का ठिकान,
मिली जिम्मेदारी से हुआ रत,
बच्चों की पढ़ाई में हुआ मस्त,
सोचा था शिक्षा का करूंगा दान,
परिवार पर भी रखूंगा कान,
बच्चों को मिले बेहतर शिक्षा बनाया लक्ष्य,
ईमानदारी से किए काम का मिला साक्ष्य,
काम से खुश एवम् संतुष्ट था,
काफी समय गुजर गया था,
अचानक शिक्षा विभाग में,
हुआ आमूलचूल परिवर्तन,
छात्र हित के नाम पर,
शिक्षक के काम पर,
शुरू हुई धमाचौकरी,
कठिन हुई अब नौकरी,
न होली, छठ न ही दिवाली,
सभी त्योहार अब खाली खाली,
घर छूटा अपने छूटे छूट गया समाज,
जीना दुर्लभ हो गया आज,
छात्र सह शिक्षक हो रहे बेरंग,
पढ़ाई तभी होगी जब होंगे संग,
आदेशालोक में पर्व त्योहार की छुट्टी हुई रद्द,
छुट्टी में भी शिक्षक स्कूल पहुंचे पढ़ाने गद्द,
जब बच्चे नहीं आयेंगे स्कूल,
शिक्षक क्या करेंगे जाकर स्कूल,
पढ़ाई लगातार हो अच्छी बात है,
रुचिकर हो ये गुणवत्तापूर्ण बात है,
कम समय में बेहतर ज्ञान,
होना चाहिए इसका भान,
पर्व त्योहार भी पढ़ाई का ही है पार्ट,
खुशनुमा माहौल में पढ़ाना भी है आर्ट,
जबर्दस्ती जब मुंह में न जाता खाना,
कैसे मिलेगा ज्ञान का खजाना,
नौकरी में ना कभी करना नहीं,
बेबस शिक्षक हूं कुछ कहना नहीं।

विवेक कुमार
(स्व रचित एवम् मौलिक)
उत्क्रमित मध्य विद्यालय,गवसरा मुशहर
वर्तमान प्रतिनियुक्त विद्यालय
भोला सिंह उच्च माध्यमिक विद्यालय, पुरुषोत्तमपुर,
मुजफ्फरपुर, बिहार

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