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अराधना-विजय सिंह नीलकण्ठ

अराधना

ईश अराधना से ही सबके 
बन जाते हैं बिगड़े काम 
ऐसा भू के मानव कहते 
पा जाते हैं सभी मुकाम। 
उनको मन मंदिर में रखकर 
फतह हो जाता कठिन डगर 
हिम्मत साथ सदा है रहती 
साहस पर भी होती पकड़। 
गर कोई विपदा आ जाए 
याद उन्हीं को करते हैं 
उनकी ही कृपा दृष्टि से 
विपदाओं से लड़ते हैं। 
दावानल हो चाहे समंदर 
पार वही लगाते हैं 
राह भटकने पर तो केवल 
वही तो राह दिखाते हैं। 
माया मोह लोभ में फँसकर 
मानव जन उन्हें भुला देते 
ऐसों को ही सबके स्वामी 
थोड़ी सी सजा देते। 
फिर भी जो न इसे समझते 
बहु बोझ विपद की हो उसपर 
दुःख में ऐसे जीवन जीते 
बेचैनी सह तड़प तड़प कर। 
नीलकण्ठ करता है विनती 
हर गलती को माफ करें   
दुःख हरकर थोड़ा सुख देकर 
मुझपर भी थोड़ी कृपा करें।
विजय सिंह नीलकण्ठ 
सदस्य टीओबी टीम 
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