Site icon पद्यपंकज

चल लौट चलेंं-लवली कुमारी

चल लौट चलें

चल लौट चलें
अब गांव की ओर
वो मिट्टी की सोंधी
सोंधी सी खुशबू
वो सरसों की बालि
खेतों में लहराए
फिर इठलाती हुई
पक्षियों की पाँखें
मानो जैसे हवा में
फैला रहा सौरभ
चल लौट चलें
अब गांव की ओर
वो बागों की झूले
जहां हम बचपन में खेले
पक्के आमों की सुबास
वो पनघट की मेले
जहां छम-छमाती
पायल की झंकारे
कब से तड़पा रही
ये आस
चल लौट चलें
अब गांव की ओर
वो कोयल की
प्यारी-प्यारी कूक
वो मां के हाथों की
मक्के की रोटी
वो मास्टर जी की
लंबी लाठी
वो रेलगाड़ी की
सीटी की छुक-छुक
राह देखती मेरी
अनपढ़ मिट्टी
चल लौट चले
अब गांव की ओर।

लवली कुमारी
उत्क्रमित मध्य विद्यालय अनूप
बारसोई कटिहार

0 Likes
Spread the love
WhatsappTelegramFacebookTwitterInstagramLinkedin
Exit mobile version