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चौसर – रुचिका

चौसर

जिंदगी के चौसर पर हम रहें
बस एक मोहरें
चाल ऊपर वाला चलता रहा।
कभी शह, कभी मात वह देता
और दर्प इंसानों के मन में
बढ़ता रहा।

जिंदगी के चौसर पर हम रहें
बस एक मोहरें
संबंधो के वजीर,प्यादे,
अपने खाने में चलें अपनी चालें
चाल उनकी समझ न पाएं
कभी शह, कभी मात
इसमें दिल ये उलझता गया।

जिंदगी के चौसर पर हम रहें
बस एक मोहरें
ऊपर वाला चलता चालें
बस एक नियम सिखाता रहा।
हर प्यादे की अपनी कीमत
अपनी कीमत स्वयं ही आँके
हर शिकस्ती के बाद फिर ये दिल
सदा ही उबरता रहा।

रूचिका
प्राथमिक विद्यालय कुरमौली गुठनी सिवान बिहार

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