प्यारे-चाँद
ओ चाँद उतर मेरे अँगना,
मैं तो बैठी संग है बहना।
जा ढूंढ के ला मेरा सजना,
न उतरे तो फिर ना कहना।
यह पूनम बहुत निराली है,
है मस्त बहुत मतवाली है।
यह चाँद की तो दीवानी है,
मुझे दूर क्यों रखने वाली है।
ऐ चाँद तू छुप जा बादल में,
क्योबैठा नभ के आँचल में।
है लिये चांदनी चितवन में,
आ उतरो मेरे आँगन में।
मैं पल पल तुम्हे निहार रही,
मैं कब से तुन्हें दुलार रही।
चलता है तू , मैं पुकार रही,
अवनी जल सहित उतार रही।
है जीवन लीला जैसा तू,
बढ़ता घटता है कैसा तू।
सुख-दुख है पावन वैसा तू,
अद्भुत प्यारे पिय जैसा तू।
स्नेहलता द्विवेदी “आर्या”
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