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गिरीन्द्र मोहन झा

Girindra Mohan Jha

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छोटी-छोटी उपलब्धियां मिलकर बड़े उपलब्धि का रूप ले लेती है।

छोटे-छोटे कार्य, छोटे-छोटे सुधार, छोटी-छोटी प्रगति जीवन में बहुत मायने रखते हैं।

विकास से बढ़कर सतत विकास होता है।

कर्म के मूल में गुण और गुण के मूल में स्वभाव होता है।

जिस काम और जितने काम को करके संतुष्टि मिलती है, वह हमारे लिए उपलब्धि है।

आत्मसंतुष्टि से बड़ी कोई उपलब्धि नहीं।

छोटे-छोटे किन्तु अर्थपूर्ण कार्यों को पूर्ण कर लेने से हमें खुशी और संतुष्टि मिलती है।

उच्च ध्येय को ही लक्ष्य बनाना चाहिए।

उस लक्ष्य को पूर्ण करने का प्रयास करना चाहिए।

संकल्प से संतुष्टि, संकल्प से सिद्धि यही तो जीवन का पथ है।

कहते भी हैं।

 

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