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कैसे-प्रभात रमण

कैसे 

माँ भारती के दिव्य रूप को
मैं दिवास्वप्न समझूँ कैसे ?
इसके परम पूण्य प्रताप को
मैं भला भूलूँ कैसे ?
वीरों के शोणित धार को
कैसे मैं नीर बना डालूँ ?
कोई यत्न करूँ ऐसा
हर बालक वीर बना डालूँ !
प्रीत, मीत, संगीत को
वंदन गीत बनाऊँ कैसे ?
अपने रक्त के हाला में
असुरों का जीवन डुबाऊँ कैसे ?
नापाक पाक के कदमों को
कैसे मैं आगे बढ़ने दूँ ?
शंघाई के संघ को
कैसे मैं शिखर में चढ़ने दूँ ?
भगत, अशफाक के वंशज को
फाँसी पर मैं झुलाऊँ कैसे ?
सैनिकों के शहादत को
मनमस्तिष्क से हटाऊँ कैसे ?
माँ के मान, गान, स्वाभिमान को भुलाकर
कैसे अपना जीवन जिऊँ ?
वीरता के चित्र के चरित्र को ना कहूँ
तो क्या डरकर अपने होठों को सियूँ ?
झाँसी वाली रानी को,
देश की दीवानी, मर्दानी, स्वाभिमानी को
अब मैं भुलाऊँ कैसे ?
वीरों की निशानी, फाँसी झूलती जवानी को
अब मैं फिर बुलाऊँ कैसे ?
माता के बगिया का एक फूल हूँ मैं
उनके ही चरणों का धूल हूँ मैं
उनके गद्दारों को धूल चटा सकता हूँ मैं
जंग लगे तलवारों पर धार चढ़ा सकता हूँ मैं
सिंह का माँस खाने वाले भेड़ियों के दाँत तोड़ू कैसे ?
माता के आँचल मैला करने वालों का
मैला रक्त निचोडूँ कैसे ?
कलम छोड़कर शस्त्र उठाकर
इतिहास बदल सकता हूँ मैं
हिमगिरि से सिंधुराज तक भारत का
आकाश बदल सकता हूँ मैं
पर, माता के बेटों का अपमान करूँ कैसे ?
उनको कमजोर बताकर
मैं दुश्मन से लड़ूँ कैसे ?
भारत माता के रक्षा में
एक बार सीमा पर मरूँ कैसे ?

 प्रभात रमण
   मध्य विद्यालय किरकिचिया

 फारबिसगंज अररिया

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