माता घर-घर में आती है, धर कन्या का रूप।
पाठ पढ़ाती शक्ति बोध का, उसके हर स्वरूप।।
शैलसुता सी किलकारी दे, घर वासी हो भूप।
ब्रह्मचारिणी सदा किशोरी, होती बड़ी अनूप।।
नवयौवना चंद्रघंटा सी, रखती अनुपम तेज।
कुष्मांडा बनकर ही कन्या, रखती गर्भ सहेज।।
स्कंदमाता रूप में आकर, ममता रखती सेज।
कात्यायनी करती संघर्ष, जकड़ा जहाँ दहेज।।
कालरात्रि रूप को धरकर, करे दुष्ट संहार।
रूप महागौरी का लेकर, प्रेम भरे संसार।।
सिद्धिदात्री जहाँ बन जाए, पुलकित हो परिवार।
नवदुर्गा का वंदन करके, मिलता खुशी अपार।।
आओ मिलकर पूजन कर लें, कन्या हम-सब आज।
रहें हमेशा ऋण कन्या का, ऐसा इनका काज।।
इनसे सुखमय जीवन सारा, इनसे सिर का ताज।
“पाठक” ध्यान रहे इतना ही, कुत्सित हो न समाज।।
रचयिता:- राम किशोर पाठक
प्रधान शिक्षक
प्राथमिक विद्यालय कालीगंज उत्तर टोला, बिहटा, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978

